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यस आई एम—12 [पास्ट स्टोरी]



नॉवेल 

★★★

घर से बाहर निकलकर वह लड़की अपने आस पास के इलाके को देखते हुए बोली। "ओह! इसलिए मै इतने दिनों से किसी के दिमाग पर काबू नही कर पा रही थी। क्योंकि यहां इंसान तो दूर परिंदा भी दिखाई नही दे रहा।" उसने बड़े ही ठंडे लहजे से कहा और आस पास देखने लगी।

जहां तक भी उसकी नजर जा रही थी वहां तक पूरा इलाका सुनसान और थोड़ा रेतीला था। जिस घर में से वह निकली थी, उस के अलावा वहां पर खंडहर तक भी नही था। 

"मै तो खुश थी, बाहर निकल कर। मुझे कुछ नया देखने को मिलेगा। पर ये जगह तो मेरी कैद से भी परे निकली।" कहकर वह वहां से चल दी और चलते चलते बोली। "चलो! इस सुनसान इलाके में कोई आएगा भी नही और उन्हें लाशें मिलेंगी भी नही। गलती से कोई आ भी गया तो तब तक लाशें सड़ ही जानी है।" इतना कह कर वह वहां से चल दी।



एक, दो मंजिला सामान्य आकार का घर, जो गांव के आखिरी छोर पर बना हुआ था। घर का दरवाजा किसी हवेली की तरह बना हुआ था। रात के सन्नाटे में कीट पतंगों की आवाज के अलावा कुछ भी सुनाई नही दे रहा था। तभी गेट से बाहर एक तीस, पैंतीस उम्र की एक महिला आती हुई दिखाई दी। जो दर्द की वजह से बहुत बुरी तरह से चीख रही थी। एक अधेड़ उम्र की महिला ने उसके बालों को बहुत बुरी तरह से पकड़ा हुआ था।

महिला एक हाथ से अपने बालों को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी और दूसरा हाथ उसने अपने पेट पर रखा हुआ था। वह अपने गर्भावस्था के आखिरी पड़ाव में थी। 

"आप हमारे साथ ऐसा क्यों कर रही है?" पीछे से एक शख्स ने चिल्लाते हुए पूछा। जिसे उसी के हमउम्र दो शख्स ने पकड़ा हुआ था। उस शख्स की आंखो में बेबसी साफ दिखाई दे रही थी।

अधेड़ उम्र की महिला ने दर्द होने के बावजूद भी उस महिला को नही छोड़ा। उल्टा वह पहले से भी ज्यादा बेरहम हो गई। वह उसे घसीटते हुए घर के दरवाजे तक ले आई। अधेड़ उम्र की महिला के पीछे से निकल कर दो और महिलाएं सामने आई, जिनके हाथों में बड़े बड़े बैग्स थे। उन्होंने उन बैग्स को बारी बारी से बाहर फेंक दिया। बैग्स के बाहर फेकते ही, अधेड़ उम्र की महिला ने गर्भवती महिला को बड़े जोर से धक्का दे दिया।

धक्का इतने जोर से था कि वह महिला पेट के बल सीधा घर के बाहर बनी हुई सीढ़ियों पर गिरती। पर किस्मत से उस से पहले ही शख्स ने सभी को धक्का मारकर खुद को छुड़ा लिया और आकर उसे पकड़ लिया। वह उसे संभालते हुए बोला। "स्वर्णा! तुम ठीक तो हो ना?"

"हां!" स्वर्णा ने संभलते हुए जवाब दिया। 

"पता नही आप लोगों की इन्सानियत कहां गई? या फिर मर ही गई? बाकि सब का समझ आता है। पर आप तो एक मां हैं और मां होकर भी दूसरी मां का दर्द नही समझ रही।" उस शख्स ने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा।

"इन्सानियत थी तभी तो इतने दिनों तक घर पर रखा।" वृद्ध महिला ने कड़वाहट से जवाब दिया।

"आप इसे इन्सानियत कहती है?" शख्स ने गुस्से में हांफते हुए पूछा और फिर आगे बोला। "मैने आप लोगों के लिए कितना कुछ किया, यहां तक कि अपने हिस्से की जमीन भी अपने भाइयों को दे दी और बदलें में हमें क्या मिला?" इतना कह कर वह आस पास पड़े हुए अपने सामान को देखने लगा।

"कौन सा अहसान कर दिया?" अधेड़ उम्र की महिला ने कड़वाहट के साथ पूछा।

"वैदिक रहने दीजिए!" स्वर्णा ने वैदिक का हाथ पकड़ते हुए कहा। दर्द की वजह से उसकी आंखें अपने आप बंद हो गई।

"जब मै कमाता था, तब तो आप सब बड़े चाव से खाते थे।" वैदिक ने रूंधे हुई आवाज में अपनी बात कही।

"जब तुम्हारी मां चल बसी, तब मैने ही तुम्हें खिलाया था और फिर तुम्हारी बीवी को भी।" अधेड़ उम्र की महिला ने जवाब दिया। जिसके ऊपर वैदिक की किसी भी बात का कोई असर नही हो रहा था। 

"जीजी! भाईसाहब को समझाइए कि जब मां जी कुछ कह रही है तो वे मान क्यों नहीं रहे? वे जो भी कहती है आपकी भलाई के लिए ही कहती है।" वहां पर खड़ी हुई एक महिला ने कहा।

"फिर बहस कैसे होगी?" कहकर दूसरी महिला हँसने लगी।

स्वर्णा कुछ कहने ही वाली थी कि वैदिक ने उसे रोक लिया। वह समझ चुका था कि उन्हें समझने वाला वहां पर कोई भी नही था। उसकी किसी भी दलील का उन सभी पर जरा सा फक्र भी नही पड़ने वाला था।

उसने स्वर्णा को सही से खड़ा किया और अपने बैग्स उठाने लगा और वहां से चल दिया। उन्हें जाता हुआ देख उसका परिवार बेहद खुश था।

"वैसे मां जी आपने बहुत अच्छा किया। पहले तो इन दोनों ने घर पर कब्जा कर लिया था और बाद में आकर इनका बेटा कर लेता।" सुनंदा जो स्वर्णा की बड़ी देवरानी थी, ने कड़वाहट से कहा।

"सही कहा जीजी आपने! फिर हमारे बच्चों का क्या होता?" लक्षिता ने सुनंदा की बात का जवाब दिया।

उन दोनों की बात का अधेड़ उम्र की महिला, जिसका नाम ऊषा देवी था,ने कोई जवाब नही दिया। कुछ देर सभी टकटकी लगाए हुए एक दूसरे को देखते रहे और फिर घर के अंदर चले गए।

वैदिक, स्वर्णा को लेकर गांव की कच्ची सड़क को पार कर मुख्य सड़क पर आ गया था। उसने वहां जाकर स्वर्णा को बड़े से पत्थर पर बैठा दिया और खुद जाकर आती हुई गाड़ियों को देखने लगा। आधा घंटा बीत जाने के बाद भी, वहां पर कोई गाड़ी नही आई। गाड़ी तो दूर की बात वहां पर कोई इन्सान भी नही आया।

वैदिक धीरे धीरे अपनी उम्मीद खोने लगा। लेकिन तभी उसे स्वर्णा की आवाज सुनाई दी, जो दर्द की वजह से चिल्ला रही थी। जब वैदिक ने उसे देखा तो पाया कि दर्द की वजह से उस से सही से बैठा भी नही जा रहा था। पर वह फिर भी हिम्मत दिखा रही थी। वह भागते हुए उसके पास गया और उसने सारे बैग्स उसकी कमर के पीछे लगा दिए। ताकि वह आराम से बैठ सके और फिर उसके तलवों की मालिश करने लगा, जो इस वक्त भारी होने के साथ साथ बहुत गर्म भी हो रहे थे। 

वैदिक के इतना सब कुछ करने के बावजूद भी स्वर्णा की हालत में कोई सुधार नहीं आया। वह आगे कुछ कर पाता उस से पहले ही उसे दूर से आती हुई एक रोशनी दिखाई दी। जो शायद उसके लिए एक नई उम्मीद लेकर आई थी। 

वैदिक ने स्वर्णा को सही से उसकी जगह पर बैठाया और सड़क पर जाकर उस दिशा में देखने लगा,जहां से वह रोशनी आ रही थी। उसने देखा कि दूर से दो जोड़ी चमकती हुई लाल लाल आंखें आ रही थी। जो किसी गाड़ी की हेड लाइट थी। उन्हें देखकर वैदिक को एक नई उम्मीद मिल गई। जैसे जैसे वह गाड़ी पास आ रही थी वैसे वैसे ही वैदिक की उम्मीद और खुशी बढ़ रही थी।

गाड़ी के पास आते ही वह जोर जोर चिल्लाते हुए हाथ हिलाने लगा। पर गाड़ी में सवार शख्स ने वहां पर गाड़ी नही रोकी। वैदिक पागलों की तरह उस गाड़ी के पीछे भागने लगा। कुछ ही पलों में गाड़ी वैदिक की आंखो से औझल हो गई। गाड़ी के साथ साथ वैदिक की सारी उम्मीद भी जा चुकी थी।

वह भागता हुआ वापिस स्वर्णा के पास आया और उसे पानी पिलाने लगा। स्वर्णा से अपने पति की बेबसी देखी नही जा रही थी। उसकी आंखो से आंसू टपकने लगे। जो सीधा जाकर वैदिक के हाथ पर गिर गए। 

वैदिक, स्वर्णा के आंसु पौछते हुए बोला। "हिम्मत रखो स्वर्णा! सब अच्छा होगा। भगवान के घर देर है अंधेर नही।" वैदिक ने, स्वर्णा को हिम्मत देते हुए कहा। जबकि वह खुद भी हिम्मत हार चुका था। अपनों द्वारा दिए गए जख्म, दुश्मनों के वार से कई गुना ज्यादा घातक होते है। जो इंसान को जीते जी मार देते है।

पर स्वर्णा की हालत को देखकर वैदिक कमजोर भी नही पड़ सकता था। अगर स्वर्णा इस हालत में ना होती तो वह आज वैदिक के साथ साथ बाकि सब कुछ संभाल लेती। पर इस हालत में उसे खुद वैदिक की सबसे ज्यादा जरूरत थी। स्वर्णा की हालत अब और ज्यादा बिगड़ने लगी। वैदिक ने उसे सहारा देकर खड़ा किया और वहां से चलने लगा।

एक गाड़ी रात के अंधेरे को चीरती हुई बड़ी तेजी के साथ बढ़ रही थी। तभी उसका फोन बड़े जोर जोर से बजने लगा। वह गाड़ी ड्राइव करते हुए बोला।

"आ रहा हूं बेबी! इमरजेंसी आ गई थी तो जाना पड़ा।" सामने वाले के बोलने से पहले ही गाड़ी में बैठे हुए शख्स ने कहा।

"ठीक है! जल्दी आ जाइए। मेरा मन नहीं लग रहा अकेले।" दूसरी ओर से महिला ने कहा।

"ठीक है! जल्द ही आता हूं।" कहकर उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी और फिर गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी।

तभी उसे अपनी गाड़ी की हैड लाइट में एक कपल दिखाई दिया। जो पैदल ही चल रहा था। वह उन्हें देखते हुए बोला। "इतनी रात में कौन इस तरह सड़क पर टहलता है?" कहकर वह इधर उधर देखने लगा। पर उसे कुछ भी समझ में नही आया।

जब वह उनके पास से गुजरा तो उन्होने गाड़ी रुकवाने के लिए कोई इशारा नही किया इसलिए वह शख्स भी आगे बढ़ गया। तभी उसकी नजर ना जाने कहां गई। उसने गाड़ी रोक कर, पीछे हटा ली।

वैदिक, स्वर्णा को लेकर चल दिया था। तभी उसे अपने पास आती हुई गाड़ी दिखाई दी। एक बार को उसका मन किया गाड़ी रुकवा ले। पर वह इस से पहले भी कई गाड़ी रुकवा चुका था। उनमें से किसी ने भी गाड़ी नहीं रोकी। उम्मीद टूटने के अलावा उसे कुछ भी नही मिला। 

हर गाड़ी की तरह ये गाड़ी भी आगे बढ गई। पर अगले ही पल जो कुछ भी हुआ उसे देखकर वैदिक को आंखें खुली की खुली रह गई। वह गाड़ी वापिस आ रही थी। जिसे देखकर उसे खुशी भी हो रही थी और डर भी लग रहा था।

वह इस हालात में वहां से भाग नही सकता था। रुक कर इन्तजार करने के अलावा उसके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था। उनके पास आते ही गाड़ी की खिड़की खुल गई। उसमें से सूट बूट पहने हुए उसी की उम्र का एक शख्स निकला। वह बाहर निकलते ही बोला। 

"आप इस हालत में अपनी बीवी को यहां पर लेकर क्यों आए? इन्हें हॉस्पिटल ले जाना चाहिए था।" उसने स्वर्णा को देखते हुए कहा।

"जब अपने साथ छोड़ दे, किस्मत मुंह मोड़ ले और भगवान..." अपनी बात अधूरी छोड़कर वह चुप हो गया। पर सामने वाला शख्स उसकी बात समझ गया।

"आप अपनी बीवी को लेकर मेरी गाड़ी में बैठिए। इनका हॉस्पिटल जाना बेहद जरूरी है।" शख्स ने गंभीरता से अपनी बात पर जोर देते हुए कहा।

उसकी बात सुनकर वैदिक थोडी दूरी पर पड़े हुए अपने बैग्स को देखने लगा। उसकी नजरों का पीछा करते हुए जब शख्स ने उस ओर देखा तो वहां पर पड़े हुए बैग्स को देख कर सारा माजरा समझ गया।

"आप अपनी बीवी को गाड़ी में बैठाइए! बैग्स को मै लेकर आता हूं।" उस शख्स ने वैदिक ने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। जो वैदिक को अपनत्व का एहसास दे गया। जिसकी उसे सक्त जरूरत थी। 

वैदिक से स्वर्णा को गाड़ी में पिछली सीट पर बैठाया और जाकर उस शख्स के पास चला गया। जो बैग्स को डिग्गी के पास ले आया था।

उन्होंने डिग्गी खोल कर बैग्स को उसमें डाला और शख्स का इशारा मिलते ही जाकर स्वर्णा के पास बैठ गया। वह शख्स फटाफट ड्राइविंग सीट पर बैठा और फिर वे वहां से चले गए।

★★★

जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है, बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️

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5 Comments

hema mohril

25-Sep-2023 03:26 PM

Beautiful

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Barsha🖤👑

01-Feb-2022 09:12 PM

Nice

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Karan

12-Dec-2021 10:02 PM

Behtreen...

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